भारत छोड़ो आंदोलन: वे घटनाएँ जिन्होंने चिंगारी भड़काई और इसके परिणाम

भारत छोड़ो आंदोलन: वे घटनाएँ जिन्होंने चिंगारी भड़काई और इसके परिणाम

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में 'भारत छोड़ो आंदोलन' एक मील का पत्थर साबित हुआ। 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे बड़े और निर्णायक संघर्षों में से एक था। लेकिन, इस विशाल जन आंदोलन की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई और इसके क्या दूरगामी परिणाम हुए? आइए विस्तार से समझते हैं।

वे घटनाएँ जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन को जन्म दिया

कई आंतरिक और बाहरी कारकों के संयोजन ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ अंतिम और निर्णायक संघर्ष के लिए प्रेरित किया:

1. द्वितीय विश्व युद्ध और ब्रिटिश नीति का दोहरापन:

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) ने ब्रिटिश साम्राज्य की कमजोरियों को उजागर कर दिया था। ब्रिटेन ने भारत को बिना उसकी सहमति के युद्ध में शामिल कर लिया, जिससे भारतीयों में भारी असंतोष था। ब्रिटिश सरकार एक ओर तो युद्ध में 'लोकतंत्र' और 'स्वतंत्रता' के मूल्यों की बात कर रही थी, वहीं दूसरी ओर भारत में औपनिवेशिक शासन बनाए हुए थी। इस दोहरेपन ने भारतीयों को अंग्रेजों के इरादों पर संदेह करने पर मजबूर कर दिया।

2. क्रिप्स मिशन की विफलता (मार्च 1942):

युद्ध में भारत का समर्थन प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा। क्रिप्स मिशन ने युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस देने और संविधान सभा बनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की कोई बात नहीं थी। साथ ही, रियासतों को भारत से अलग रहने का विकल्प दिया गया, जिससे भारत के विभाजन का खतरा बढ़ गया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। गांधीजी ने इसे "पोस्ट-डेटेड चेक" (post-dated cheque) कहा, जिसका बैंक दिवालिया होने वाला था। क्रिप्स मिशन की विफलता ने भारतीयों को यह विश्वास दिला दिया कि ब्रिटिश सरकार भारत को वास्तविक स्वतंत्रता देने की इच्छुक नहीं है।

3. जापान का बढ़ता खतरा और ब्रिटिशों की अक्षमता:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापान तेजी से दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश उपनिवेशों पर कब्जा कर रहा था और भारत की पूर्वी सीमाओं तक पहुँच गया था। रंगून (आधुनिक यांगून) पर जापान का कब्जा हो चुका था। भारतीयों को डर था कि ब्रिटिश सरकार उन्हें जापान के आक्रमण से बचाने में अक्षम साबित होगी, जैसा कि वह सिंगापुर और मलाया में हुई हार में साबित हुई थी। गांधीजी का मानना था कि यदि अंग्रेज भारत छोड़ दें, तो जापानियों के पास भारत पर हमला करने का कोई कारण नहीं रहेगा।

4. आवश्यक वस्तुओं की कमी और बढ़ती कीमतें:

युद्ध के कारण भारत में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी वृद्धि हुई थी और उनकी उपलब्धता कम हो गई थी। इससे आम जनता में व्यापक असंतोष और निराशा फैल रही थी।

5. गांधीजी का नेतृत्व और 'करो या मरो' का आह्वान:

इन सभी परिस्थितियों के बीच, महात्मा गांधी ने महसूस किया कि अब निर्णायक कार्रवाई का समय आ गया है। उन्होंने 8 अगस्त, 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र में 'करो या मरो' (Do or Die) का ऐतिहासिक नारा दिया, जिसने आंदोलन को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की।

भारत छोड़ो आंदोलन के परिणाम

आंदोलन के तत्काल और दीर्घकालिक दोनों तरह के महत्वपूर्ण परिणाम हुए:

1. त्वरित और व्यापक दमन:

आंदोलन शुरू होते ही ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं (गांधीजी सहित) को गिरफ्तार कर लिया। इससे आंदोलन नेतृत्वहीन हो गया, लेकिन यह स्वतःस्फूर्त रूप से पूरे देश में फैल गया। सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए अत्यधिक बल का प्रयोग किया, जिसमें लाठीचार्ज, गोलीबारी और सामूहिक गिरफ्तारियां शामिल थीं।

2. जन आंदोलन का स्वरूप:

यह आंदोलन एक जन आंदोलन बन गया, जिसमें छात्र, किसान, मजदूर, महिलाएं और विभिन्न वर्गों के लोग शामिल हुए। कई स्थानों पर समानांतर सरकारें (जैसे बलिया, सतारा, तामलुक) स्थापित की गईं। हालांकि यह आंदोलन अहिंसक होने का आह्वान किया गया था, लेकिन कई जगहों पर हिंसा भी हुई, खासकर जब लोगों ने सरकारी इमारतों, रेलवे लाइनों और पुलिस थानों को निशाना बनाया।

3. ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई:

हालांकि ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबा दिया, लेकिन इस आंदोलन ने स्पष्ट कर दिया कि भारत में ब्रिटिश शासन अब लंबे समय तक नहीं चल सकता। इसने ब्रिटिश अधिकारियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि युद्ध के बाद भारत को स्वतंत्रता देना ही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प है।

4. अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और ब्रिटिश प्रतिष्ठा में गिरावट:

युद्ध के दौरान भी, अमेरिका और चीन जैसे देशों ने ब्रिटेन पर भारत को स्वतंत्रता देने का दबाव डाला। भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की प्रतिष्ठा को और कम कर दिया।

5. भविष्य के नेताओं का उदय:

आंदोलन के दौरान, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया जैसे कई युवा नेता भूमिगत रहकर आंदोलन को गति देते रहे, जो बाद में भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।

6. स्वतंत्रता की दिशा में अंतिम धक्का:

भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के ताबूत में अंतिम कील ठोकने का काम किया। इसने भारतीय जनता के दृढ़ संकल्प और स्वतंत्रता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाया। युद्ध के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जो अंततः 1947 में भारत की आजादी के साथ समाप्त हुई।

संक्षेप में, भारत छोड़ो आंदोलन केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह भारतीय राष्ट्रवाद की एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति थी जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि भारत अब और उपनिवेश नहीं रहेगा। इसने स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त किया और एक नए, संप्रभु भारत की नींव रखी।

Published on: Jul 20, 2025