बादल फटने की परिघटना: क्या है Cloudburst और यह कैसे होता है?

बादल फटने की परिघटना: क्या और कैसे?

मानसून का मौसम भारत के लिए जीवनदायिनी होता है, लेकिन इसी दौरान कुछ ऐसी मौसमी घटनाएँ भी घटित होती हैं जो विनाशकारी साबित हो सकती हैं। 'बादल फटना' (Cloudburst) ऐसी ही एक अचानक और अत्यधिक तीव्र वर्षा वाली घटना है, जो अक्सर पहाड़ी इलाकों में कहर बरपाती है। यह सिर्फ भारी बारिश नहीं, बल्कि कुछ विशिष्ट भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों का परिणाम होती है। आइए समझते हैं कि बादल फटना क्या है और यह कैसे होता है।

क्या है बादल फटना? (What is Cloudburst?)

वैज्ञानिक रूप से, 'बादल फटना' एक छोटी भौगोलिक सीमा के भीतर (लगभग 20 से 30 वर्ग किलोमीटर) बहुत कम समय में (आमतौर पर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक) होने वाली अत्यधिक तीव्र वर्षा को कहते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी स्थान पर एक घंटे में 100 मिलीमीटर (या 10 सेंटीमीटर) से अधिक बारिश होती है, तो उसे बादल फटना माना जाता है।

यह सामान्य मानसूनी बारिश से बहुत अलग है, जहाँ वर्षा की तीव्रता कम होती है और यह बड़े क्षेत्र में फैलकर धीरे-धीरे होती है। बादल फटने की स्थिति में, बारिश इतनी मूसलाधार होती है कि ऐसा लगता है जैसे आसमान से पानी का एक पूरा गुबार नीचे गिर गया हो, मानो कोई 'बादल फट' गया हो।

बादल कैसे फटते हैं? (How Do Cloudbursts Occur?)

बादल फटने की घटना में कई भौगोलिक और वायुमंडलीय कारक एक साथ काम करते हैं:

1. नमी से लदी हवाएँ और बादलों का बनना:

यह प्रक्रिया अक्सर पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों से जुड़ी होती है। जब अरब सागर या बंगाल की खाड़ी से नमी से भरपूर मानसूनी हवाएँ ऊपर उठती हैं, तो वे पहाड़ों से टकराती हैं। पहाड़ों की वजह से ये हवाएँ और ऊपर उठने को मजबूर होती हैं, जिससे वे ठंडी होती हैं और उनमें मौजूद जलवाष्प संघनित होकर बादलों का निर्माण करती है।

2. संवहन धाराएँ और ऊर्ध्वाधर मेघ (Cumulonimbus Clouds):

गरम और आर्द्र हवा ऊपर उठती है और बहुत तेजी से ठंडी होती है। यह प्रक्रिया एक मजबूत संवहन (convection) बनाती है, जिससे विशाल और घने कपासीवर्षी मेघ (Cumulonimbus clouds) बनते हैं। ये बादल ऊर्ध्वाधर रूप से बहुत ऊँचे (12-15 किलोमीटर या अधिक) तक फैल सकते हैं और इनमें भारी मात्रा में पानी होता है। इन बादलों में ऊपर की ओर उठने वाली हवा की धाराएँ (updrafts) इतनी मजबूत होती हैं कि वे बारिश की बूंदों को नीचे गिरने से रोकती हैं।

3. 'ओवरशूटिंग' और पानी का जमाव:

जब updrafts (ऊपर उठने वाली हवा) इतनी तीव्र हो जाती है कि वे गुरुत्वाकर्षण बल को पार कर जाती हैं, तो वे बादलों के भीतर बड़ी मात्रा में पानी की बूंदों और बर्फ के क्रिस्टल को जमा कर लेती हैं। ये बादल लगातार पानी इकट्ठा करते रहते हैं, लेकिन उन्हें नीचे गिरने नहीं देते।

4. अचानक 'ब्रेकडाउन':

एक बिंदु पर, बादल के अंदर पानी का भार इतना अधिक हो जाता है कि ऊपर उठने वाली हवा की धाराएँ (updrafts) इसे और अधिक देर तक रोक नहीं पातीं। जब यह भार एक सीमा से अधिक हो जाता है, तो बादल के भीतर की संवहन प्रणाली अचानक कमजोर पड़ जाती है या ढह जाती है।

परिणामस्वरूप, बादल में जमा सारा पानी, गुरुत्वाकर्षण के कारण, एक छोटे से क्षेत्र में एक साथ, अत्यंत तीव्र गति से नीचे गिरता है। यही वह क्षण होता है जब 'बादल फटता' है। यह प्रक्रिया अक्सर किसी पहाड़ की चोटी या ढलान पर होती है, जिससे पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है और बाढ़, भूस्खलन व जनहानि का कारण बनता है।

भारत में बादल फटने की गंभीरता:

भारत में, खासकर हिमालयी राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर) और पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएँ आम हैं। इन घटनाओं के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है। पहाड़ों की खड़ी ढलानें और कमजोर भूवैज्ञानिक संरचनाएँ, अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के खतरे को बढ़ा देती हैं। शहरीकरण और निर्माण गतिविधियों ने भी इन क्षेत्रों को बादल फटने के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।

हालांकि, बादल फटना एक छोटी और स्थानीयकृत घटना होती है, लेकिन इसके परिणाम दूरगामी हो सकते हैं। इसकी अप्रत्याशित प्रकृति और विनाशकारी क्षमता इसे एक गंभीर मौसमी खतरा बनाती है, जिसके लिए बेहतर पूर्वानुमान प्रणालियों और आपदा प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता है।

Published on: Jul 20, 2025